• महाराष्ट्र-झारखंड चुनावों में मोदी से ज्यादा अदानी का स्टेक

    पार्टी पदाधिकारियों और पूर्व या तत्कालीन विधायकों का कांग्रेस या अन्य दलों की ओर प्रयाण हुआ था वह अभूतपूर्व था। वहां कांग्रेस की बड़ी सभाएं और रैलियां हुईं।

    — डॉ. दीपक पाचपोर
    हाल ही में हरियाणा में जीत की दूर-दूर तक सम्भावना नहीं थी। वहां जिस बड़े पैमाने पर चुनाव के ठीक पहले भाजपा नेताओं, पार्टी पदाधिकारियों और पूर्व या तत्कालीन विधायकों का कांग्रेस या अन्य दलों की ओर प्रयाण हुआ था वह अभूतपूर्व था। वहां कांग्रेस की बड़ी सभाएं और रैलियां हुईं। इसके विपरीत भाजपा के प्रत्याशियों को कई गांवों में घुसने तक नहीं दिया गया।

    विधानसभा चुनावों की वर्तमान में जारी श्रृंखला के अंतर्गत झारखंड के दूसरे व अंतिम तथा महाराष्ट्र के एकमेव चरण के लिये बुधवार को जो मतदान होने जा रहा है उसमें केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ही स्टेक नहीं है। कहें तो मोदी के सबसे करीबी कारोबारी मित्र गौतम अदानी का कहीं अधिक दांव पर लगा हुआ है। मोदी इस वक्त चाहे विदेश की यात्रा पर हों और पिछले कुछ दिनों से वे दोनों राज्यों के चुनावी परिदृश्य में वैसे नहीं दिखाई दिये जैसे कि वे अमूनन चुनावों के दौरान उपस्थित रहा करते हैं, तो कोई यह न समझे कि वे इन चुनावों से निराश हो चुके हैं या फिर वहां पराजय का खतरा महसूस करते हुए खुद को अलग कर लिया, जैसा उन्होंने विगत में पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, तेलंगाना आदि राज्यों में किया था जिनमें भारतीय जनता पार्टी को हार मिली थी।

    झारखंड और महाराष्ट्र उपरोक्त बताये गये राज्य नहीं हैं। जगजाहिर है कि मोदी अब इन बातों का विशेष ख्याल नहीं रखते कि किस राज्य में भाजपा की जीत से उनकी छवि सुधरेगी और किन राज्यों में पराजयों से गिरेगी। उन्होंने भाजपा को ऐसे रंग में रंग दिया है कि किसी भी प्रदेश का चुनाव जीतने पर उन्हीं के माथे सेहरा सजता है और हारने पर पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा या स्थानीय इकाई प्रमुख के सिर होते ही हैं- ठीकरे फोड़ने के लिये। मोदी का प्रचार तंत्र साबित कर देता है कि जीत का कारण मोदी का चेहरा है और पराजय के वे बिलकुल जिम्मेदार नहीं हैं। अब अपने 3:0 के कार्यकाल में मोदी ने यह लिहाज भी छोड़ दिया है कि उनके नाम को अदानी या रिलायंस के मालिक मुकेश अंबानी के साथ जोड़ा जाता है। छत्तीसगढ़ का चुनाव याद करें तो वह मोदी के लिये जितना अहम था उतना ही महत्वपूर्ण अदानी के लिये भी था। उस रौ में मध्यप्रदेश तथा राजस्थान भी बह निकले और कहने को हो गया कि यदि अदानी के लिये ही मोदी चुनाव लड़ते हैं तो बाकी दोनों राज्य (मप्र-राज.) कैसे भाजपा ने जीत लिये जहां अदानी की कोई दिलचस्पी नहीं थी तो उसके दूसरे रणनीतिक कारण थे जो कांग्रेस की अंदरूनी कलह और मैनेजमेंट की असफलताओं से जुड़े हुए हैं। उस पर पहले से पर्याप्त चर्चा हो चुकी है।

    इस मुद्दे को यदि विपरीत दिशा से बढ़ते हुए समझा जाये तो स्थिति और भी साफ हो जाती है। हाल ही में हरियाणा में जीत की दूर-दूर तक सम्भावना नहीं थी। वहां जिस बड़े पैमाने पर चुनाव के ठीक पहले भाजपा नेताओं, पार्टी पदाधिकारियों और पूर्व या तत्कालीन विधायकों का कांग्रेस या अन्य दलों की ओर प्रयाण हुआ था वह अभूतपूर्व था। वहां कांग्रेस की बड़ी सभाएं और रैलियां हुईं। इसके विपरीत भाजपा के प्रत्याशियों को कई गांवों में घुसने तक नहीं दिया गया। किसानों की सबसे ज्यादा नाराज़गी जिन राज्यों में थी उनमें यह प्रदेश प्रमुखता से शामिल है। मतगणना में सुबह से आगे चलती कांग्रेस ने बामुश्किल आधे घंटे की अवधि में इतनी बड़ी संख्या में सीटें गंवा दी कि वह सरकार बनाने वाले आंकड़े से दूर हो गयी। उधर जम्मू-कश्मीर में कई कारणों से भाजपा की दिलचस्पी खत्म हो गयी थी इसलिये उसने सघनता से चुनाव नहीं लड़ा जैसा कि उसने हरियाणा का लड़ा था। दोनों के चुनाव लगभग एक साथ हुए थे और परिणाम भी एक ही दिन आये थे। फिर, अनुच्छेद 370 हटाने का जो राजनीतिक लाभ भाजपा को उठाना था, वह उसने देश भर में उठा लिया था। सच तो यह है कि जम्मू-कश्मीर में सरकार चलाने से कहीं अधिक फायदेमंद है उस पर सियासत करना। वहां सरकार चलाना अपनी उंगलियां जलाना है। वैसे भी वहां न तो आतंकवादी गतिविधियां रूकीं और न ही भाजपा को कश्मीरी पंडितों को बसाने में सफलता मिल पाई। सम्भवत: भाजपा को यह बात भी समझ में आ गयी होगी कि वहां उसके कारोबारी मित्र न तो उद्योग लगा सकते हैं और न ही जमीनें खरीद सकते हैं। वैसे भी जम्मू-कश्मीर इतना संवेदनशील राज्य है कि किसी न किसी बहाने से उसकी सरकार को आसानी से गिराया जा सकता है। धु्रवीकरण की राजनीति उस राज्य में विपक्षी बेंचों पर बैठकर कहीं अधिक आसानी से की जा सकती है। इसलिये उसे छोड़ देना बेहतर समझा गया होगा।

    छत्तीसगढ़-ओडिशा-झारखंड वह हरियर पट्टा है जो खनिज सम्पन्न है, खासकर इन राज्यों की जमीनों के नीचे कोयले का अकूत भंडार दबा हुआ है। देश भर में चल रहे अपने बिजली संयंत्रों के लिये अदानी को कोयले की निर्बाध और भरपूर सप्लाई चाहिये। यही वह कारण है कि इन तीनों राज्यों की विधानसभाओं को जीतना भाजपा और उससे बढ़कर मोदी के लिये जीतना बहुत ज़रूरी है। अदानी व्यवसायिक दृष्टि से मोदी पर और मोदी राजनीतिक सफलता के लिये अदानी पर निर्भर हैं। यदि मोदी को अपनी राजनीति चलानी है तो उनके लिये अदानी के कारोबारी हितों की रक्षा करनी ज़रूरी है। इसलिये झारखंड की विधानसभा में भाजपा का बहुमत मोदी के लिये अहम बन गया है। अदानी के व्यवसायिक हितों के तार धीरे-धीरे विभिन्न राज्यों के राजनीतिक क्षितिजों को छू रहे हैं। महाराष्ट्र भी ऐसा ही प्रदेश है। विशेषकर मुंबई। महानगर के बीचों-बीच बसे और दुनिया की सबसे बड़ी झुग्गीबस्तियों में से एक धारावी के पुनर्निर्माण का एक बड़ा प्रोजेक्ट मुख्यमंत्री कार्यालय में लम्बित बतलाया जाता है। यह अदानी की ही परियोजना है।

    धारावी में लोगों को मय नागरिक सुविधाओं के पक्के आवास देने वाली यह योजना पहले भी अलग-अलग रूपों एवं नामों से लाई जाती रही है। पिछली सदी के आठवें दशक में राजीव गांधी धारावी के कायाकल्प के लिये प्रधानमंत्री विकास परियोजना (पीएमडीपी) लेकर आये। यह योजना ठीक से प्रारम्भ हो पाती उसके पहले ही कांग्रेस का राज जाता रहा। फिर इसे डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा 2008 में लागू करने की बात की गयी। उसका संशोधित स्वरूप बनने के पहले यूपीए की सरकार 2014 में चली गयी। वैसे 1995 में जब महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा ने चुनाव जीता था तो उसका सबसे बड़ा कारण था चुनावी घोषणा पत्र में किया गया यह वादा कि उनकी सरकार बनने के बाद धारावी के हर परिवार को पक्का घर मिलेगा। वैसे वह योजना भी आगे नहीं बढ़ पाई लेकिन पहले की दो गारंटियों और अब भाजपा की योजना के बीच प्रमुख फर्क यह है कि शिवसेना-भाजपा तथा यूपीए सरकार ने यह योजना शासकीय स्तर पर लागू करने का तय किया था जबकि डबल इंजिन सरकार पहले दिन से साफ कर चुकी है कि यह योजना अदानी व्यवसाय समूह क्रियान्वित करेगा। अधिकतर लोगों को भरोसा नहीं है कि उनका विस्थापन और पुनर्वास ठीक से हो सकेगा। कई तो मानते हैं कि एक बार धारावी छोड़ने के बाद वे शायद ही अपनी जगहों पर लौट सकेंगे। धारावी को इतना महंगा कर दिया जायेगा कि वहां की झोपड़पट्टियों और छोटी-छोटी खोलियों में रहकर गुजारा करने वाले लोग खुद ही बेदखल हो जायेंगे।

    कांग्रेस नेता राहुल गांधी पहले ही कह चुके हैं कि मोदी का नारा 'एक हैं तो सेफ हैं' का अर्थ है अदानी की तिजोरी में भाजपा और मोदी का सुरक्षित होना। सोमवार को उन्होंने कैमरे के सामने तिजोरी से मोदी-अदानी की तस्वीर और धारावी की सेटेलाइट इमेज निकालकर महाराष्ट्र में अदानी के हितों को सार्वजनिक कर दिया। महाराष्ट्र के गुजरातीकरण का मुद्दा शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे पहले ही उठा चुके हैं।
    (लेखक देशबन्धु के राजनीतिक सम्पादक हैं)

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